लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
365 दिन में 364 दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
दिन हमारा कैसे हुआ :
8 मार्च, 1857 : न्यूयार्क शहर में सैकड़ों-हज़ारों पोशाक और टेक्सटाइल महिला-श्रमिक जमा हुई और उन लोगों ने अपने कर्मस्थल में अमानवीय परिवेश के खिलाफ़ प्रतिवाद किया। बारह घण्टे का काम और मामूली-सी तनख्वाह। पुलिस ने आ कर तितर-बितर किया। इसके दो वर्ष बाद उन महिला श्रमिकों ने एक यूनियन का गठन किया।
8 मार्च, 1908 : न्यूयार्क शहर में पन्द्रह हज़ार औरतों ने एक सभा आयोजित की। उनकी माँग थी-काम का समय कम करना होगा। तनख्वाह बढानी होगी। वोट का अधिकार दिया जाये। शिशु श्रम बन्द कर दिया जाये।
उसी वर्ष के मई महीने में अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने फरवरी के अन्तिम इतवार को 'राष्ट्रीय नारी दिवस' घोषित किया।
28 फरवरी, 1909 : पूरे अमेरिका में पहली बार 'राष्ट्रीय नारी-दिवस' मनाया गया। सन् 1913 तक अमेरिका की महिलाओं ने नारी-दिवस पालन किया।
सन् 1910 : यूरोप की महिलाओं ने फरवरी के अन्तिम इतवार को 'नारी-दिवस' के तौर पर मनाना शुरू किया।
डेनमार्क के कोपेनहेगन में अन्तर्राष्ट्रीय समाजतान्त्रिक पार्टी की सभा में 'नारी-दिवस' को अन्तर्राष्ट्रीय बनाने की माँग की। जर्मन सोशलिस्ट पार्टी की नेत्री, क्लारा जेट्किन ने अग्रणी भूमिका निभायी। सत्रह देशों की एक सौ महिला प्रतिनिधियों ने 'अन्तर्राष्ट्रीय नारी-दिवस' के प्रस्ताव का समर्थन किया।
अन्तर्राष्ट्रीय नारी-दिवस के लिए उस ज़माने में, कोई दिन निर्धारित नहीं हुआ था।
19 मार्च, 1911 : यूरोप में 'अन्तर्राष्ट्रीय नारी-दिवस', महासमारोह के रूप में मनाया जाता रहा। ऑस्ट्रिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड और डेनमार्क की दस लाख से अधिक महिलाओं ने अपने अधिकारों की माँग करते हुए सभा आयोजित की। वोट का अधिकार, राजनीति करने का अधिकार, काम करने का अधिकार, कर्मस्थल में औरत-मर्द के बीच में मौजूद वैषम्य दूर करने की माँग की गयी।
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- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं